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The broken Umbrella – फटा हुआ छाता – Hindi Story

Broken umbrella – fata hua chhata – hindi story – rahulrahi.com
भीम सिंह कभी इतनी तेज़ी से अपने घर की तरफ नहीं चला था। तेज़ बरसात हो रही थी, हाथ में छाता तो था लेकिन लग ऐसा रहा था कि वो मुट्ठी में बंद किसी का मसला हुआ गला था। उसकी कद काठी भी सामान्य भारतीय से कुछ इतनी ऊँची थी कि वो भीड़ में भी आसानी से दिख जाया करता था। रास्ते मे उसका पड़ोसी जो खुले छातों की भीड़ में खड़ा था, उसे देखकर ज़ोर से बाँग लगाते हुए बोला, “अरे ओ पहलवान, इतनी जल्दी में कहाँ?”

अपनी गति को कुछ धीमा करते हुए उसने आवाज़ की तरफ अपने कान दिए लेकिन फिर कदमों की तेज़ी और बढ़ गई। किसी तेज़ जानवर की तरह वह गुस्से में छातों वाली उस भीड़ को घाँस के तिनकों के जैसे तितर – बितर करते हुए आगे बढ़ रहा था। हर एक की नज़र उसे घूरते हुए कह रही थी कि देखो, कैसा पागल आदमी है कि भरी बरसात में छाता बंद किए हाथ मे लिए जा रहा है। चलते – चलते या कह लो कुछ बीच – बीच में दौड़ते – दौड़ते वह बड़बड़ाते हुए जा रहा था, “समझता क्या है वो अपने आप को? आज तो हद पार हो गई।” अपनी जेब पर हाथ रखते हुए बोला, “रुपए पैसे सब भीग गए।”

कुछ दूर जाने के बाद एक इमारत के भीतर वह दाख़िल हो गया। लाल ईंटों से बनी उस चार मंज़िला इमारत की सीढ़ियों पर वह अपने पैर जमाते हुए जल्दी-जल्दी में दो – दो पायदान चढ़ने लगा। तीसरी मंज़िल पर जाते ही उसने आखिरी कमरे के दरवाज़े को ज़ोर से धकेला और अंदर बैठे युवक पर बरस पड़ा, “यह क्या बेहूदगी है?, वह दुबला – पतला युवक, आँखों पर चश्मा लगाए, कॉपी में कुछ लिख रहा था। “रमन के बच्चे मैं तुमसे बात कर रहा हूँ।”, “हम्म… सुना मैंने, इतना लाल – पीले क्यूँ हो रहे हो?” अपनी आवाज़ में कुछ कठोरपन लाते हुए उसने कहा, “ओह्ह तो यह तुम्हारी ही कारस्तानी थी।” रमन ने अब अपनी नज़र ऊपर उठाई, “अरे वाह! कितने अच्छे लग रहे हो।” इतना सुनते ही भीम का पार और चढ़ गया और तुरंत ही उसने हाथ मे पकड़ा हुआ छाता ज़मीन पर पटका और झल्लाते हुए कहा, “क्या तुम एक ढंग का जवाब दे सकते हो कि तुमने यह जो भी किया वो सही था, और तुम मेरे घूँसे से बच जाओ।” रमन बड़ी शांत मुद्रा में हल्का सा हँसा और कहा, “कुछ साल पहले तक तुम्हे बारिश में भीगना पसंद था, क्योंकि तब तुम कोई मैनेजर नहीं थे।” अपनी कॉपी बन्द कर रमन कुर्सी से खड़ा हुआ और भीम की आँखों मे झाँककर बोला, “तुम्हार इसे घूँसे से मैं डरता नहीं, काश मेरे बस में होता तो, इस छाते की तरह तुम्हारी ज़िन्दगी में भी कई छेद कर देता।” इतना कहकर वो फिर कुर्सी पर बैठ गया और भीम की नज़र फर्श पर उस फ़टे हुए छाते पर थी, पर उसका गुस्सा अब शांत था।

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